आयातित हथियारों में किल स्विच क्या होते हैं , और इसके हमें क्या नुकसान हैं

जब हम किसी जटिल हथियार का आयात करते है तो निर्माता कम्पनी इसमें कुछ ऐसे बेक डोर रखती है, जिससे वे हथियारों के उपयोग पर अपना नियंत्रण बना कर रख सके। किल स्विच इसी नियंत्रण का एक अंग है।

हथियार खरीदते समय आयातक देश को कई प्रकार के लीगल एग्रीमेंट साइन करने पड़ते है। यदि कोई देश इस एग्रीमेंट को तोड़ता है तो निर्यातक देश किल स्विच को एक्टिवेट कर देते है, और हथियार काम करना बंद कर देता है।

लड़ाकू विमान, एयरक्राफ्ट कैरियर, मिसाइले, रडार, लेसर गाईडेड बम, हेलिकोप्टर, युद्ध पोत से लेकर पनडुब्बियों तक सभी प्रकार के आधुनिक जटिल हथियारों एवं रक्षा उपकरणों में अनिवार्य रूप से किल स्विच होते है। \ . \ ---------\ .\ इनके उपयोग पर निर्बन्धन लगाने वाले एग्रिमेंट को End Use Monitoring कहा जाता है। सभी प्रकार के आयातित हथियारों को खरीदते समय इस तरह का एग्रीमेंट करना होता है।

उदाहरण के लिए भारत द्वारा अमेरिका से ख़रीदे गए हथियारों पर लागू होने वाले एंड यूज मोनिटरिंग एग्रीमेंट की कुछ शर्तें देखिये :

(1) यदि अमेरिका के अधिकारी इन हथियारों का भौतिक अवलोकन करना चाहते है तो भारत इनकार नहीं कर सकता। भारत को अमेरिकी अधिकारियो को विशिष्ट वीजा एवं अनुमति वगेरह देनी होगी, ताकि वे आकर हथियारो का भौतिक सत्यापन कर सकें !!

उदाहरण के लिए अभी जो रफाल लिए जा रहे है, उन्हें लेने के बाद फ़्रांस कभी भी भारत आकर इन्हें देख सकता है। तो हमने जहाँ भी ये विमान तैनात किये हुए है, या तो वहां ले जाकर उन्हें दिखाने पड़ेंगे या सभी रफाल किसी एक जगह पर इकट्ठे करने पड़ेंगे ताकि फ्रेंच अधिकारी इनका भौतिक निरीक्षण कर सकें। इस तरह आयातित विमानों से लैस वायुसेना की हरकत हर समय निर्यातको की नजर में रहती है।

(2) यदि भारत इन हथियारों में कोई बदलाव करना चाहता है तो उसके लिए पहले अमेरिका से अनुमति लेनी होती है।

उदाहरण के लिए भारत यदि रफाल विमान के रडार पैनल को बदलना चाहता है, या कोई ऐसा बदलाव करना चाहता है जिससे अमुक विमान से फ्रेंच मिसाइलो के अलावा अन्य मिसाईल भी फायर की जा सके, तो पहले फ्रेंच अधिकारियो से इसकी अनुमति लेनी होती है। जाहिर है, वे इस तरह की अनुमति नही देंगे।

(3) हथियारों का मेन्टेनेंस सिर्फ अमेरिकी कम्पनी ही करेगी, और स्पेयर पार्ट्स भी निर्यातक कम्पनी से ही लेने होते है।

भारत जब तक रफाल इस्तेमाल करेगा तब तक फ्रेंच कम्पनी ही इसका मैन्टेनेंस करेगी। किसी अन्य कम्पनी से या खुद से न तो इसका मेन्टेनेंस कर सकते है और न ही इसके स्पेयर पार्ट्स बदल सकते है। और इसके लिए हमें हमेशा डॉलर चुकाने होंगे !!

(4) इनका कब कहाँ इस्तेमाल कर सकते है, उसके बारे में भी पहले अनुमति लेनी होती है।

उदाहरण के लिए अभी पाकिस्तान के पास F-16 है, तो पाकिस्तान यदि भारत पर स्ट्राइक करना चाहता है तो उसे पहले अमेरिका से पूछना पड़ता है। यदि वह भारत पर चाइनीज एयरक्राफ्ट यूज करना चाहता है तो उसे चीन से पूछना पड़ेगा। \ \ इसके अलावा अन्य शर्तें एग्रीमेंट के सैंकड़ो पृष्ठों में फैली हुयी है, और सरकारें बहुधा इन पर क्लासिफाइड का लेबल चिपका कर सार्वजनिक करने से मना कर देती है। पर इससे आप यह अंदाजा लगा सकते है कि आयातक हथियारों के उपयोग पर निर्यातक देश का कितना कठोर नियंत्रण होता है। \ \ ये कुछ कानूनी टर्म्स मैंने ऊपर बतायी है।\ .

किन्तु प्रश्न है कि यदि कोई देश हथियार खरीदने के बाद इन शर्तों का पालन न करे तो निर्यातक देश क्या क्या उखाड़ लेगा ?

इसके लिए वे दो तरह के तरीके इस्तेमाल करते है :

(1) स्पेयर पार्ट्स : लड़ाकू विमान जैसे हथियारों को इस तरह से डिजाईन किया जाता है कि प्रत्येक कुछ हजार घंटो की उड़ान के बाद कुछ विशिष्ट स्पेयर पार्ट्स को बदलने की जरूरत होती है। और निर्माता कम्पनी इन पार्ट्स की सप्लाई सीमित मात्रा में देती है।

यूँ समझिये कि जिस तरह कार में 5 हज़ार किलोमीटर के बाद इंजन ऑयल चेंज होता है, उसी तरह प्लेन में भी कई तरह के रेगुलर मेन्टेनेंस होते है। तो निर्यातक कम्पनी 1000--2000 उड़ान घंटो के ही स्पेयर पार्ट्स देती है, ताकि कम्पनी को यह जानकारी रहे कि विमान कब कितना उड़ रहा है !!

उदाहरण के लिए, मान लीजिये कि भारत फ्रेंच सरकार से कहता है कि हमें इतने अमुक स्पेयर पार्ट की जरूरत है, तो फ्रेंच कहेंगे कि अभी पिछले महीने तो आपको इसके दो डब्बे भेजे है। और महीने में जितना प्लेन आप उड़ाते हो उस हिसाब से अभी 1 महीने आपका काम और चल जायेगा। तो भारत कहेगा कि नहीं अभी हमें युद्धाभ्यास करना है, उसके लिए हमें अतिरिक्त उड़ाने भरनी होगी। तो फ्रेंच यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक स्पेयर पार्ट्स युद्धाभ्यास के लिए ही माँगा जा रहा है, या भारत ने रफाल का इस्तेमाल बोर्डर पर गश्त करने के लिए करना शुरू कर दिया है। और जब फ्रेंच संतुष्ट हो जायेंगे तो हमें स्पेयर पार्ट्स भेज देंगे।

यह पढने सुनने में अजीब लगता है, लेकिन इस बात पर ध्यान दें कि हम यहाँ किसी मोपेड की नही बल्कि फाइटर प्लेन की बात कर रहे है। दुनिया में सिर्फ 6 देशो को ही यह चमत्कार बनाना आता है। तो जब वे इस तरह का शक्तिशाली हथियार बेचते है तो हर कोण से यह सुनिश्चित करते है कि हथियार पर हमारा 100% नियंत्रण रहे। \ .

(2) किल स्विच : कभी कभी किसी देश को हथियार का उपयोग करने से तत्काल रोकना होता है, और हो सकता है, अपनी राजनैतिक मजबूरी के कारण नेता निर्यातक देश की शर्तें मानने से इनकार कर दे।

उदाहरण के लिए अभी भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की तो पाक ने पूर्व घोषणा कर दी थी कि वह भारत को जवाब देगा। और यदि अमेरिका नहीं चाहता कि पाक F-16 का इस्तेमाल करे , तो अमेरिका पाकिस्तान के F-16 का किल स्विच एक्टिवेट कर देगा। और इसके एक्टिवेट होने के बाद प्लेन स्टार्ट ही नहीं होगा, या उसका एक पंखा घूमेगा दूसरा नही घूमेगा, या उसका रडार काम करना बंद कर देगा आदि आदि !!

और इस मदद के एवज में अमेरिका भारत से अपनी कोई शर्त मनवा लेगा। जैसे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी भारत से SBI बैंक के कुछ हिस्से खरीद लेगी, या अमेरिका भारत से कहेगा कि आप अपनी सेना के लिए जो 6 लाख राइफल खरीदने वाले हो वो हमसे खरीदो, या फिर वे जीएसटी जैसा कोई क़ानून डालने को कहेंगे। या किसी ट्रेन ट्रेक का सौदा वगेरह !!

तो जब किसी हथियार पर आकस्मिक बलात नियंत्रण हासिल करना होता है तो किल स्विच इस्तेमाल किये जाते है।\.\ 2.1. किसी उपकरण में किल स्विच कहाँ होते है ?\.\ किसी भी इलेक्ट्रोनिक उपकरण में चिप्स एवं पीसीबी होते है, और ये चिप्स ही उपकरण का दिमाग है। कोई भी इलेक्ट्रोनिक उपकरण कैसे फंक्शन करेगा, इस फंक्शन का प्रोग्राम कॉड इन चिप्स में होता है। टीवी, मोबाईल, कैमरे, कम्प्यूटर से लेकर आप जितनी भी चीजे इस्तेमाल कर रहे है, उनमे चिप्स है। किसी फाइटर प्लेन या पनडुब्बी में उनके अलग अलग फंक्शन को कंट्रोल करने के लिए 5,000 या उससे भी ज्यादा तक सेमी कंडक्टर चिप्स और माइक्रो प्रोसेसर्स हो सकते है।

जब इनमे प्रोग्राम कॉड डाला जाता है, तो प्रोग्राम में एक अतिरिक्त कोड जोड़ दिया जाता है। मान लीजिये इसमें यह कमांड डाली गयी है कि चिप को यदि यह सन्देश मिले तो चिप खुद को स्विच ऑफ़ कर देगी, या पूरे सर्किट को उड़ा देगी। अब यदि प्लेन को रेडियो फ्रीक्वेंसी से कमांड भेजी जाए तो उसमे पहले से मौजूद प्रोग्राम कमांड का पालन करेगा और सिस्टम को बंद कर देगा। इस कोड के बारे में सिर्फ निर्माता को ही पता रहता है।

उदाहरण के लिए जब आपका फोन खो जाता है और आप कम्पनी को रिक्वेस्ट भेजते है तो कम्पनी उसे कमांड भेजती है और फोन लॉक या स्विच ऑफ हो जाता है। तो कम्पनी ऐसा इसीलिए कर पाती है क्योंकि कम्पनी ने उसमे इस तरह कि कमांड का कॉड डालकर रखा हुआ है। किन्तु फोन कम्पनी ने यह कॉड आपको नहीं दिया हुआ है। इसीलिए इस फंक्शन को वे ही कंट्रोल कर सकते है, आप नहीं कर सकते। और जब कम्पनी इस कमांड का इस्तेमाल करके आपका फोन बंद करेगी तो इसे आप तब तक स्विच ऑन नहीं कर पायेंगे जब तक कम्पनी इसकी अनुमति न दें।

अब ध्यान देने वाली बात यह है कि , इस तरह की कमांड देने के लिए इंटरनेट की जरूरत नहीं होती है। जिस तरह टीवी रिमोट काम करता है उसी तरीके से रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करके बिना किसी इंटरनेट के इन्हें कमांड दी जा सकती है। सभी हथियारों में फंक्शन के लिए सोफ्टवेयर एवं संचार के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल होता है।

इसके अलावा किल स्विच सोफ्टवेयर के अतिरिक्त हार्ड वेयर ट्रोजन के रूप में भी हो सकता है। \ .\ 2.2. क्या किल स्विच को ट्रेस किया जा सकता है ?\.\ यदि ट्रोजन हार्ड वेयर के रूप में है तो जिसने यह ट्रोजन रखा है वह भी अब इसे नहीं पकड सकता। सोफ्टवेयर या प्रोग्राम कॉड के रूप में होने पर सिर्फ उस व्यक्ति को पता रहता है, जिसने यह ट्रोजन चिप या पीसीबी में रखा है। हार्डवेयर ट्रोजन सेमी कंडक्टर चिप बनाते हुए ही रख दिए जाते है। और एक बार रखने के बाद यह पता लगाना मुमकिन नहीं है कि इसमें कोई ट्रोजन है, और अगर है तो किस तरह का ट्रोजन है। इसे रिवर्स इंजीनियरिंग द्वारा भी नहीं पकड़ा जा सकता। \ .\ 2.3. किल स्विच पर निर्यातक देश का लीगल स्टेंड क्या है ?\ .\ जब कोई कम्पनी लड़ाकू विमान या ऐसा ही को जटिल हथियार बेचती है तो एग्रीमेंट में यह दर्ज करती है कि,

यदि इस हथियार में कोई किल स्विच या बेक डोर है तो हम इसकी कोई गारंटी नही लेते। किन्तु हमने अपने पूरे प्रयासों द्वारा यह सुनिश्चित किया है कि इसमें इस तरह का कोई किल स्विच नहीं है।

और वजह इसकी यह है कि लड़ाकू विमान जैसी मशीन में सैंकड़ो कम्पनियों के पुर्जे लगे रहते है। कंट्रोल पेनल किसी कम्पनी का होता है, कूलिंग सिस्टम किसी कम्पनी का होता है, आदि। तो निर्यातक कम्पनियां इंजन और कंट्रोल पैनल जैसे जटिल पार्ट्स खुद बनाती है और इनमे किल स्विच या बैक डोर रख देती है। और फिर बोल देती है कि हमें न पता यदि किसी ने ट्रोजन रखा है !! \ .\ 2.4. किल स्विच एवं End Use Monitoring से सम्बंधित कुछ घटनाएं जो सार्वजनिक हो गयी :\. \ (A) हाल ही मैं अमेरिकी प्रशासन ने पाकिस्तान को सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी थी कि वे अमेरिका से पूछे बिना भारत पर F-16 का इस्तेमाल कर करे। हालांकि यह खुली हुयी बात है कि, अमेरिका ने पहले पाकिस्तान को भारत पर F-16 से हमला करने की अनुमति दी और जब F-16 गिरा दिया गया और बात खुल गयी तो बाद में भारत की जनता को मामू बनाने के लिए सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया, कि पाकिस्तान ने हमसे बिना पूछे F-16 उड़ाया।

US asks Pakistan if they misused F-16s against India

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(B) सीरिया के पास रूस से खरीदा हुआ एक बेहद एडवांस रडार था। लेकिन 2007 में जब 7 इस्राएली विमान परमाणु रिएक्टर पर हमला करने के लिए सीरिया में घुसे तो इस रडार ने काम करना बंद कर दिया, और जब इस्राएली विमान रिएक्टर को तबाह करके चले गए तो यह फिर से काम करने लगा !!

हथियार निर्माता कम्पनियो ने भी स्वीकार किया कि सेमी कंडक्टर चिप्स एवं माइक्रोप्रोसेसर में यदि ट्रोजन है तो इससे रडार को जाम किया जा सकता है। माना जाता है कि इस्राएल ने बड़ी मात्रा में पैसा देकर रडार बनाने वाली कम्पनी से इसका किल कोड खरीद लिया था। और जब उनके प्लेन सीरिया में घुसे तो उन्होंने कोड की सहायता से रडार को जाम कर दिया।

Operation Outside the Box - Wikipedia

.\ (C) अमेरिकी-फ्रांसीसी हथियार बनाने वाली कम्पनीयों का कहना है कि, वे अपने माइक्रो प्रोसेसर्स में किल स्विच एवं बेक डोर रखते है ताकि इसे दूर से एक्सेस किया जा सके। अपने पक्ष में उनका तर्क है कि यह एक सुरक्षा चक्र है, ताकि यदि भविष्य में ये हथियार किसी शत्रु के हाथों में आ जाए, तो हम सर्किट को निष्क्रिय करके हथियार को बेकार कर सके।

The Hunt for the Kill Switch

.\ (D) बोईंग अपने विमानों को हवा में ही अपडेट कर सकता है, और उन्होंने अपने विमानों में ऐसे बेक डोर रखे है। पिछले वर्ष इस बेक डोर का मालूम होने पर रेडियो फ्रीक्वेंसी द्वारा प्लेन को हैक किया गया था। हमारे प्रधानमन्त्री जी बोईंग में ही उड़ते है, और इस विशेष विमान में विशेष तौर पर ट्रोजन रखे गए है। यदि ट्रोजन एक्टिवेट कर दिया जाए तो इंजन बंद हो जायेगा और पेड मीडिया में खबर आएगी कि किसी तकनिकी खराबी की वजह से प्लेन क्रेश हो गया है !! तो जब तक हमारे पीएम हवा में रहते है वह बोईंग के हवाले रहते है !!

DHS says it remotely hacked a Boeing 757 sitting on a runway

.\ (E) 2010 में ईरान के न्यूक्लियर रिएक्टर का सेंट्रीफ्यूज अचानक 10 गुना रफ़्तार से घूमने लगा और जल कर ख़ाक हो गया। ईरान के इस सिस्टम में सीमेन्स ने एक बेक डोर रखा था। अंतराष्ट्रीय न्यूज एजेंसियों एवं रिसर्चरों द्वारा यह माना जाता है कि अमेरिका एवं इस्राएल ने संयुक्त रूप से एक ऑपरेशन चलाया और इस बेकडोर से स्टक्सनेट ( Stuxnet ) वॉयरस भेज कर ईरान के न्यूक्लियर सेंट्रीफ्यूज को तबाह कर दिया।

Was Stuxnet Built to Attack Iran\'s Nuclear Program?

. \ (F) इण्डिया टुडे ने 2016 के एक अंक में यह खबर प्रकाशित की थी कि कारगिल युद्ध के दौरान हमारी मिसाइलो के टाइमर्स ने अचानक काम करना बंद कर दिया था। भारत की इन मिसाइलो में कट्रोल पेनल एवं टाइमर्स रूस द्वारा दिए गए थे। टाइमर्स बेकार हो जाने के कारण हम अपनी मिसाइले फायर नहीं कर सकते थे। इसीलिए हमें अपने सैनिको को पर्वत पर चढ़कर छोटी फ़तेह करने के निर्देश देने पड़े।

.\ (G) अर्जेंटीना ने फ़्रांस ने एक्सोसेट ( exocet ) नामक बेहद आधुनिक मिसाइले खरीदी थी। अर्जेंटिना और ब्रिटेन के बीच 1984 में जब फाकलेंड युद्ध शुरू हुआ तो अर्जेंटिना के पास 6 एक्सोसेट मिसाइले थी। अर्जेंटीना ने एक्सोसेट मिसाइले छोड़कर ब्रिटेन के दो युद्ध पोत डुबो दिए थे।

बाद में अमेरिका एवं ब्रिटेन के सभी अखबारों ने यह खबर प्रकाशित की, कि थेचर ने फ़्रांस के राष्ट्रपति से कहा था कि वे उन्हें एक्सोसेट मिसाईल के किल कोड उपलब्ध कराएं , ताकि अर्जेंटीना की मिसाइलो को निष्क्रिय किया जा सके।

किल कोड दिए गए थे या नहीं ये बात कभी सामने नहीं आयी , किन्तु थेचर ने इनका इस्तेमाल नहीं किया था। थेचर ने तब फ़्रांस को इस बात पर भी राजी कर लिया था कि वे अब अर्जेंटीना को एक्सोसेट मिसाइले नहीं बेचेंगे। और फ़्रांस ने तब युद्ध के दौरान अर्जेंटीना को एक भी एक्सोसेट मिसाईल नहीं भेजी।

Thatcher \'threatened to nuke Argentina\'

.\ (H)लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन द्वारा सप्ताह भर पहले किया गया ट्विट। आर्मी अफसर अनुमान इस तरह की सूचनाएं नहीं देते। क्योंकि इससे उनके प्रमोशन में रोड़े आ जाते है। और भी कई वजहें है। किन्तु जैसे जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से यह जानकारी फैल रही है, वैसे वैसे उन लोगो पर इस विषय पर बोलने का दबाव बन रहा है।

https://pbs.twimg.com/profile_images/550345333943713794/ArJnH9v0_normal.jpeg{width="0.5055555555555555in" height="0.5055555555555555in"}

[Syed Ata Hasnain✔\@atahasnain53]{.underline}

There is alwags an element of control the originator retains over all lethal military eqpt. Jordan is as much a partner of the US and not a state which is its adversary now.

AMUL\@amulkapoor\@atahasnain53 को जवाब दिया जा रहा हैSir, these were not from the USA but bought from a Mid-East using them by Pakistan.

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[9:36 अपराह्न - 28 फ़र॰ 2019]{.underline}

Twitter Ads की जानकारी और गोपनीयता

Syed Ata Hasnain के अन्य ट्वीट देखें

. \ ये कुछ विवरण एवं लिंक मैंने दिए है जिससे आप किल स्विच के बारे में जानकारी कर सकते है। अधिक जानकारी के लिए कृपया गूगल करें। आम तौर पर इस तरह की ख़बरें बाहर नहीं आती है, और सब कुछ जनता से सीक्रेट रखा जाता है। कभी कभी कुछ खबरें छन कर सार्वजनिक हो जाती है। किन्तु यह ख़बरें ऐसी नहीं है कि, कोई सरकार सामने आकर कहे कि हमारे पास जो हथियार है उसके बटन विदेशियों के पास है, और उनकी अनुमति बिना हम इन्हें हिला भी नहीं सकते !! यदि ऐसा हुआ तो नेताजी की इज्जत एकदम से उतर जायेगी और वे देश के सामने दहाड़ कर वोट इकट्ठे नहीं कर पाएंगे। \ .

भारत के कितने हथियार आयातित है ?\.

भारत अपने 80% हथियार आयात करता है। लड़ाकू विमान से लेकर टैंक, सर्विलांस सिस्टम, रडार और पनडुब्बी से लेकर एयर क्राफ्ट कैरियर तक। और जो कुछ हथियार भारत खुद से बनाता है उनके सभी जटिल पुर्जे भी आयात करता है। उदाहरण के लिए तेजस एवं अर्जुन को स्वदेशी कहा जाता है किन्तु इंजन समेत इनके 40% महत्तवपूर्ण पुर्जे आयातित है। इन सभी जटिल पुरजो में किल स्विच होते है।

भारत के आयातित हथियारों की मात्रा एवं इनके अन्य नुकसान के बारे में मैंने विवरण इस लेख में दिए है। कृपया यह लेख पढ़ें -

अगर चीन ने आज भारत पर युद्ध की घोषणा की तो क्या होगा?

. \ हमारे देश के नेता क्यों हथियार आयात करने के लिए बाध्य होते है, और क्यों वे उन कानूनों को गेजेट में प्रकाशित करने से घबराते है जिससे भारत खुद आधुनिक स्वदेशी हथियार बनाने में सक्षम हो सके इसे समझने के लिए कृपया यह लेख देखें -

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति क्यों दी जाती है? इससे हमें क्या फायदे और नुकसान होंगे?

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तो एयर स्ट्राइक की असली कहानी क्या है ? \.

भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश विदेशियों के हथियारों पर अपनी सेना चलाते है। यदि भारत को पाकिस्तान पर स्ट्राइक करनी हो तो भी अमेरिका को पूछना होता है, और यदि पाकिस्तान भारत पर स्ट्राइक करना चाहता है तो उसे भी चीन एवं अमेरिका से अनुमति लेनी होती है। दोनों की सेनाओं के बटन अमेरिका एवं चीन के पास है। वे जिस देश के पीएम को हरी झंडी दे देंगे उस देश के नेता में जोश आ जाएगा, और टीवी-अखबार वाले उसे बाहुबली के अवतार में दिखाना शुरू कर देंगे। और यदि अनुमति नहीं मिली तो नेताजी संयम और शान्ति के गीत गायेंगे !!

यह सब लिखने पढने में अच्छा नहीं लगता, पर यही सच है। और पेड मीडिया इसीलिए पेड है, क्योंकि वह नागरिको को इस बारे सूचना नहीं देता। आज भारत के 95% नागरिक इस डरावने तथ्य से अनभिग्य है, और वे मानते है कि पाकिस्तान पर हमला करने का फैसला भारत खुद लेता है !!

और यह सब इसीलिए लिखना पड़ता है क्योंकि जब तक भारत के नागरिको तक यह जानकारी नहीं पहुंचेगी तब तक वे पेड मीडिया द्वारा चटायी जा रही अफीम में गाफिल बने रहेंगे, और अपने पीएम से सेना को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक कानूनों की मांग नहीं करेंगे। तो यह समस्या इसीलिए है क्योंकि भारत के ज्यादातर नागरिको को यह पता ही नहीं है कि समस्या क्या है !!

. \ तो यदि पेड रविश कुमार यदि मोदी साहेब के विरोधी है तो वे यह क्यों नहीं कहते कि :

भारत ने जिस लेसर गाइडेड बम का इस्तेमाल किया उस बम का इस्तेमाल करने की अनुमति हमें इस्राएल+अमेरिका से लेनी पड़ी थी, और इस वजह से हमने इतने दिनों बाद स्ट्राइक की !! पेड रविश कुमार यह क्यों नहीं बताते कि इन बमों को जिन विमानों पर माउंट किया गया था वे विमान रूस के थे और हमें इसके लिए रूस से अनुमति लेनी पड़ी थी !! और यदि ये देश हमें अनुमति न देते तो हम यह स्ट्राइक न कर सकते थे !!

और यदि मुख्य धारा की सभी राजनैतिक पार्टियों के मास्टर एक ही नहीं है तो जो पार्टिया रफाल के मामले में इसकी कीमत जैसा चिल्लर मुद्दा उठा रही है वे, क्यों नहीं प्रेस कोंफ्रेंस करके कहते कि रफाल में सबसे बड़ा घोटाला यह है कि इसमें भर भर के किल स्विच लगे हुए है, और एंड यूज मोनिटरिंग एग्रीमेंट के कारण हम फ़्रांस को पूछे बिना ये प्लेन हिला भी नहीं पायेंगे !!

और भारत की सेना में अपने प्लेन इंस्टाल करने के लिए फ्रांस भारत को यह प्लेन मुफ्त में भी दे सकता है !! क्योंकि जब हमें इन प्लेन्स की जरूरत होगी तो फ़्रांस हमसे 10 गुना कीमत वसूल लेगा, या वह मोती कीमत में इसके किल कोड चीन को बेच देगा !!

शेष किसी अन्य जवाब में कहूँगा। बहरहाल, जब हाथी ही बेच दिया तो अब अंकुश का क्या झगड़ा !!

. \ समाधान ? \.

मेरा मानना है कि यदि राईट टू रिकॉल पीएम का क़ानून गेजेट में छाप दिया जाता है तो हम आम नागरिक पीएम को वेल्थ टेक्स, जूरी सिस्टम और Woic क़ानून गेजेट में छापने के लिए बाध्य कर सकते है। इन कानूनों के गेजेट में आने से 5-6 वर्ष में भारत अपने स्वदेशी फाइटर प्लेन बनाने की क्षमता जुटा लेगा। इन प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट देखने के लिए कृपया मेरा ब्लॉग सेक्शन देखें।\ . \ और भारत के कार्यकर्ताओ को यह बात समझनी चाहिए कि किसी नेता को बदलने से भारत की सेना को आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता। 1990 से पहले तक की बात और थी , तब तक हमारे नेताओ के पास यह स्पेस था कि वे सेना को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास कर सके।

90 में सोवियत रूस के टूटने और 91 में ऍफ़ डी आई आने के बाद भारत में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का दबदबा इतना बढ़ चुका है कि अब भारत के किसी नेता और पार्टी से ऐसी हिम्मत दिखाने की उम्मीद करना उसके साथ ज्यादती होगी। सेना को आत्मनिर्भर बनाना किसी देश के लिए सबसे बड़ा टास्क है। और पूरे देश के नागरिक हिम्मत लगाये तो ही जूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स जैसे कानून लाये जा सकते है। यदि हम किसी दुसरे नेता को पीएम बना देंगे तब वह भी हथियारों का आयात ही करेगा !!\ .

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