इस प्रश्नमाला में राईट टू रिकाल कानूनों के बारे में सामान्य जानकारी दी गयी है। यह जानकारी नवागुंतक कार्यकर्ता के लिए उपयोगी है। प्रिंट करवाकर नागरिको में वितरण करने के लिए इस प्रश्नमाला का संशोधित पीडीऍफ़ इस पोस्ट के पहले कमेन्ट में देखा जा सकता है।
रिकालिस्ट : यदि यह क़ानून लागू नहीं किये गये तो भारत में शिक्षा का स्तर गिरता जाएगा , बड़े पैमाने पर गरीबी आएगी, बेरोजगारी बढ़ेगी , हम इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पिछड जायेंगे , स्थनीय निर्माण इकाइयां ध्वस्त हो जायेगी , सेना कमजोर हो जायेगी और भारत में बड़े पैमाने पर इसाई धर्म में धर्मान्तरण होंगे। इन कानूनों के अभाव में हमारी अर्थव्यवस्था को विदेशी कम्पनियां टेक ओवर कर लेगी और भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक उपनिवेश बन कर रह जाएगा। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि कोई उपाय नहीं किया गया तो इसे रोका नहीं जा सकता। क्योंकि इस प्रक्रिया को बढाने वाले क़ानून पहले से ही मौजूद है। और यदि इस दौरान हमारा सामना युद्ध से होता है , जिसकी सम्भावना बेहद ज्यादा है, तो भारत का इराकीकरण हो जाएगा। यदि ये क़ानून लागू नहीं किये गए तो ज्यादातर से भी ज्यादा सम्भावना है कि भारत को जातीय एवं धार्मिक आधार पर एक सिविल वॉर का सामना करना पड़ेगा जिसके नतीजे में भारत के भौगोलिक रूप से और भी विभाजित होने की संभावनाएं प्रबल है।
रिकालिस्ट : यह सब सरकारी स्कूलों के बदहाल होने की कीमत पर हो रहा है। ज्यादा से ज्यादा अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में जाने के लिए इसीलिए बाध्य है क्योंकि सरकारी स्कूल बदतर होते जा रहे है।
3) तो प्राइवेट स्कूलों में जाने से क्या दिक्कत है ?
रिकालिस्ट : ज्यादातर प्राइवेट स्कूल कारोबारी इकाइयां है। उनका टार्गेट किसी न किसी तरह अभिभावकों से पैसा खींचना रहता है। वे अभिभावकों से जितना पैसा वसूलते है , उसका सिर्फ 20% ही शिक्षा पर खर्च करते है। अभिभावकों का शेष 80% पैसा स्कूल द्वारा किये जा रहे शोशे एवं गैर शैक्षणिक मदों में बर्बाद हो जाता है। इससे गरीबी बढती है। यही सिलसिला जारी रहा तो सरकारी स्कूलों का स्तर और भी गिरता चला जाएगा एवं निजी स्कूलों में शिक्षा और भी महंगी होती चली जायेगी।
4) पर प्राइवेट स्कूलों में पढाई तो अच्छी होती है।
रिकालिस्ट : ऐसा नहीं है। भारत में गणित-विज्ञान का स्तर गिरता जा रहा है। सरकारो द्वारा लगातार ऐसी नीतियां लागू की जा रही है जिससे गणित-विज्ञान की शिक्षा कमजोर हो। गणित-विज्ञान का सिलेबस कमतर हो जाने की वजह से पढाई का स्तर दोनों तरह की स्कूलों में गिर रहा है। सरकारी स्कूलों में भी एवं प्राइवेट स्कूलों में भी। शिक्षा का स्तर सुधारने एवं सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए हमें राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी की जरूरत है। . 5) राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी का मतलब क्या है ?
रिकालिस्ट : राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी का मतलब है -- जिले के शिक्षा अधिकारी को चुनने एवं नौकरी से निकालने का अधिकार जिले के अभिभावकों को दिया जाए। . 6) अकेला राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी का क़ानून पूरे देश के सरकारी स्कूल कैसे सुधार देगा ?
रिकालिस्ट : जिले की शिक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए शिक्षा अधिकारी जिम्मेदार होता है। जब शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने का अधिकार जिले के अभिभावकों को मिल जायेगा तो शिक्षा अधिकारी ईमानदारी से कार्य करेगा एवं प्रत्येक जिले में सरकारी स्कूलों का शिक्षा स्तर सुधरेगा। इस तरह प्रत्येक शिक्षा अधिकारी अपने जिले की शिक्षा सुधारेगा। जो शिक्षा में सुधार नहीं लाएगा, उसे अमुक जिले के अभिभावक नौकरी से निकाल कर नये व्यक्ति को शिक्षा अधिकारी नियुक्त कर देंगे। इस तरह पूरे देश की शिक्षा का स्तर सुधरेगा। . 7) नौकरी से निकालने का अधिकार अभिभावकों को देने से शिक्षा अधिकारी ईमानदार कैसे हो जाएगा ?
रिकालिस्ट : अभी शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति राज्य के शिक्षा मंत्री / मुख्यमंत्री द्वारा होती है। अत: वह उनके फायदे के लिए ही काम करता है। शिक्षा अधिकारी प्राइवेट स्कूलों से घूस इकट्ठी करता है और अपने उच्च अधिकारियों एवं मंत्रियो को भेजता है। जब शिक्षा अधिकारी को चुनने एवं नौकरी से निकालने का अधिकार जिले के अभिभावकों के पास होगा तो शिक्षा अधिकारी जनता को राहत पहुँचाने के लिए काम करने लगेगा। वह सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाएगा। यदि वह ऐसा नहीं करता तो, अभिभावक उसे नौकरी से निकाल देंगे। जो शिक्षा अधिकारी इमानदारी से काम करेंगे एवं अच्छे नतीजे देंगे वे पद पर बने रहेंगे व शेष पर नौकरी गवाने का खतरा मंडराने लगेगा। अब या तो ये अकार्यकुशल अधिकारी खुद को सुधार लेंगे या फिर नौकरी से निकाल दिए जायेंगे। . 8) आपको ऐसा क्यों लगता है कि राईट टू रिकॉल क़ानून आने से शिक्षा अधिकारी ईमानदारी से काम करने लगेगा एंव कार्यकुशल हो जाएगा ? हो सकता है इस क़ानून के आने से भी कोई परिवर्तन न आये।
रिकालिस्ट : हमारा मानना है कि यदि कोई परिवर्तन लाया जा सकता है तो सिर्फ इसी तरीके से लाया जा सकता है। अन्य कोई भी तरीका नहीं है। या फिर यूँ कह सकते है कि इससे बेहतर नतीजे देने वाला अन्य कोई ज्ञात तरीका नहीं है। . 9) आप ऐसा किस आधार पर कहते है ?
रिकालिस्ट : देखिये , व्यक्ति सिर्फ दो ही वजह से अपने आप में सुधार लाता है। या तो उसे दंड दिया जाए या फिर उसे प्रोत्साहन दिया जाए। राईट टू रिकॉल क़ानून इन दोनों प्रकार की परिस्थितियो की रचना करता है। मौजूदा व्यवस्था में यदि कोई शिक्षा अधिकारी ईमानदारी से प्रजा हित में काम भी करना चाहता है तो उसे इसके लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। उसे सिर्फ अपने मंत्री एवं उच्च अधिकारियों को खुश रखना होता है। तो वह पदोन्नति पाने एवं अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा घूस इकट्ठी करता है एवं अपने उच्च अधिकारियो को हफ्ता पहुंचाता है।
लेकिन राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी का क़ानून आने से अब उसे यह भय रहेगा कि यदि मैं सरकारी स्कूलों को बेहतर नहीं बनाऊंगा तो अभिभावक मुझे नौकरी से निकाल देंगे। इस भय से वह अपनी नौकरी बचाने के लिए अच्छा काम करने लगेगा। दूसरा पहलु यह है कि, आज यदि किसी अधिकारी को प्रमोशन चाहिए तो उसे अपने उच्च अधिकारियो को खुश करना होता है , जनता को नहीं। राईट टू रिकॉल क़ानून आने से यदि उसे प्रमोशन चाहिए तो उसे ऐसे कार्य करने होंगे जिससे सरकारी स्कूलों का स्तर सुधरे। इस तरह वह पदोन्नति पाने के लिए अपनी कार्यकुशलता सुधारने के लिए बाध्य होगा।
हमने जो क़ानून प्रस्तावित किया है , उसके अनुसार यदि कोई शिक्षा अधिकारी अच्छा काम करता है और नागरिक उसके कार्यो का अनुमोदन करते है तो वह एक साथ 5 जिलो का शिक्षा अधिकारी बन सकेगा। इस तरह उसका वेतन 5 गुना हो जायेगा। तो यह प्रावधान ईमानदार एवं कार्यकुशल अधिकारी को प्रोत्साहित करेगा कि वह अपनी परफोर्मेंस सुधारे। इस तरह राईट टू रिकॉल की प्रक्रिया किसी अधिकारी पर दंड एवं पुरूस्कार दोनों तत्वों का अध्यारोपण करती है। . 10) क्या बिना राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओ को लाये मौजूदा व्यवस्था में ऐसे सुधार नहीं किये जा सकते कि शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो जाए।
रिकालिस्ट : हमारे विचार में राईट टू रिकॉल के अलावा इसका कोई उपाय नहीं है। अभी जो व्यवस्था है उसका डिजाइन कुछ ऐसा है कि शिक्षा अधिकारी एवं मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी अधिकारी एवं नेता शिक्षा व्यवस्था को तोड़ने व बदतर बनाने के लिए काम करते है। जो कोई ईमानदार अधिकारी या नेता शिक्षा को बेहतर बनाने की कोशिश करता है , उसे व्यवस्था से बाहर कर दिया जाता है। लेकिन नागरिको एवं अभिभावको के पास ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है जिससे वे ईमानदार अधिकारी एवं मंत्री को पद पर बनाए रख सके एवं भ्रष्ट को बाहर कर सके। जब तक शिक्षा अधिकारी को जनता के प्रति जवाबदेह नहीं किय जाता तब तक सुधार नहीं लाया जा सकता। . 11) लेकिन नागरिको के पास अपने नेताओं चुनने का अधिकार है। फिर भी वे भ्रष्ट लोगो को ही चुन रहे है। अत: राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी क़ानून आने से भी कोई बदलाव नहीं आएगा।
रिकालिस्ट : हमें सिर्फ अपने विधायक , सांसद , सरपंच एवं पार्षद को ही चुनने का अधिकार है , लेकिन इन्हें भी नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं है। अत: हम जिसे भी चुनते है वह चुन लिए जाने के तुरंत बाद भ्रष्ट हो जाता है। अब हम अगले 5 वर्ष तक उन्हें हटा तो सकते नहीं है। और हमारे पास ऐसा कोई यंत्र भी नहीं है कि यह पता लगा सके कि अमुक नेता चुन लिए जाने के बाद भी ईमानदार बना रहेगा। तो अपने नेताओं को नौकरी से निकालने का अधिकार न होने के कारण ही देश में सभी नेता भ्रष्ट है। और जो ईमानदार है , वे भी कुछ समय में जब देखते है कि ईमानदार होने में कोई लाभ नहीं है किन्तु भ्रष्ट हो जाने में लाभ ही लाभ है तो वे भी भ्रष्ट हो जाते है। . 12) लेकिन शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति करना तो मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। आम नागरिक उसे कैसे चुन सकते है।
हमने राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी की जो प्रक्रिया दी है , उसमे अभिभावक शिक्षा अधिकारी के उम्मीदवार को सिर्फ अनुमोदित करेंगे। इन अनुमोदनो के आधार पर मुख्यमंत्री शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति करेंगे। यदि मुख्यमंत्री चाहे तो अभिभावकों द्वारा अनुमोदित व्यक्ति को शिक्षा अधिकारी नियुक्त कर सकते है या नहीं भी कर सकते है। इस तरह मुख्यमंत्री के अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है। अत: यह पूरी तरह से संवैधानिक है। . 13) तो जब जनता द्वारा अनुमोदित व्यक्ति को मुख्यमंत्री शिक्षा अधिकारी नियुक्त न करने के लिए स्वतंत्र है तो फिर इस राईट टू रिकॉल क़ानून का क्या मतलब रह जाता है ?
रिकालिस्ट : मुख्यमंत्री यदि जनता द्वारा अनुमोदित व्यक्ति को शिक्षा अधिकारी नियुक्त नहीं करेंगे तो इससे जनता को यह मालूम हो जाएगा कि मुख्यमंत्री जनता की आवाज को तवज्जो नहीं देता है, और वह इस पद पर जनता के आदमी को नहीं बल्कि अपने आदमी को बिठाए रखना चाहता है। इससे मुख्यमंत्री जनता के सामने एक्सपोज हो जाएगा और अपने वोट गवां देगा। अत: मुख्यमंत्री इस प्रकार के स्पष्ट जनमत के खिलाफ जाने का दुस्साहस नहीं करेगा। . 14) शिक्षा अधिकारी चुना कैसे जाएगा ? चुनाव कैसे होंगे ? कौन उम्मीदवार हो सकेगा ? उसे जनता कैसे निकालेगी ? . अभिभावक पटवारी कार्यालय में जाकर या अपने रजिस्टर्ड मोबाईल से एसएम्एस द्वारा किसी भी उम्मीदवार को अनुमोदित कर सकेंगे। कोई भी व्यक्ति जो सांसद का चुनाव लड़ने की योग्यता रखता है , वह कलेक्टर कार्यालय में किसी भी दिन आवेदन प्रस्तुत करके उम्मीदवार के रूप में पंजीकृत हो सकेगा। इस प्रक्रिया के स्पष्टीकरण के लिए कृपया हमारे द्वारा प्रस्तावित राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी का ड्राफ्ट पढ़ें। . 15) अनुमोदन सिर्फ अभिभावक ही करेंगे क्या ?
रिकालिस्ट : हाँ। शिक्षा अधिकारी को चुनने एवं नौकरी से निकालने का अधिकार सिर्फ जिले के अभिभावकों को होगा। . 16) लेकिन अभिभावकों की अलग से वोटर लिस्ट तो उपलब्ध नहीं है।
रिकालिस्ट : यह क़ानून लागू होने के बाद जिला कलेक्टर प्रत्येक जिले में अभिभावकों की अलग से मतदाता सूचियाँ तैयार करेगा। यदि किसी दम्पति के 0-18 वर्ष की आयु के बीच कोई संतान है , तो उसका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा। . 17) कार्यरत शिक्षा अधिकारियों का क्या होगा ? क्या इन सभी को निकाल दिया जाएगा ?
रिकालिस्ट : नहीं। जिले के अभिभावक यह तय करेंगे कि कार्यरत शिक्षा अधिकारी की नौकरी चालू रखनी है या नहीं। यदि कार्यरत शिक्षा अधिकारी अपने काम में सुधार नहीं लाता है तो अभिभावक उसे हटाकर किसी दुसरे उम्मीदवार को अनुमोदित कर सकेंगे। तो इस तरह कार्यकुशल शिक्षा अधिकारी टिके रहेंगे एवं निकम्मो को अभिभावकों द्वारा निकाल दिया जाएगा। . 18) जिन्हें अभिभावक निकाल देंगे क्या उनकी सरकारी नौकरी चली जायेगी ?
रिकालिस्ट : इसका फैसला मुख्य्मंत्री करेंगे। यदि मुख्यमंत्री चाहते है कि अभिभावकों द्वारा खारिज किये गए अधिकारी को सरकारी नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिये तो वे उसे नौकरी से निकाल सकेंगे। और यदि वे उसे सरकारी सेवा में बनाए रखना चाहते है तो उसे अन्य किसी विभाग में टेप देंगे। अभिभावकों को इससे कोई सरोकार नहीं होगा। . 19) कक्षाओं का सिलेबस कौन तय करेगा ?
रिकालिस्ट : इसमें मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी। मतलब राज्य बोर्ड का सिलेबस राज्य का शिक्षा मंत्री एवं केन्द्रीय बोर्ड का सिलेबस केन्द्रीय शिक्षा मंत्री ही तय करेंगे। किन्तु जिला शिक्षा अधिकारी सिलेबस के बारे में अपने सुझाव सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर सकेंगे। मंत्री इन सुझावो पर विचार कर सकेंगे। . 20) आप सिलेबस तय करने का अधिकार स्थानीय जिला शिक्षा अधिकारी को क्यों नहीं दे रहे है ?
रिकालिस्ट : यदि ऐसा किया गया तो प्रत्येक जिले में अलग अलग सिलेबस हो जाएगा और विभिन्न जिलो एवं राज्यों के शिक्षण में एक रूपता नहीं रह जायेगी। अत: सिलेबस राज्य एवं केंद्र के मंत्री ही तय करेंगे। किन्तु यदि शिक्षा अधिकारी चाहे तो अपने जिले में नागरिको के अनुमोदन से पाठ्यक्रम में अतिरिक्त कोई पाठ वगेरह जोड़ सकता है।
21) सिलेबस को लेकर आपके क्या प्रस्ताव है ?
रिकालिस्ट : हमारा प्रस्ताव है कि पाठ्यक्रम को इस तरह से बनाया जाए कि अधिकतम से अधिकतम भार गणित-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के विषयों पर रहे। कला आदि विषयों पर न्यूनतम भार दिया जाए। हमारा प्रस्ताव है कि 10 वीं कक्षा तक डिविजन बनाने के लिए सिर्फ गणित-विज्ञान को ही शामिल किया जाए। सामाजिक विज्ञान, राजनीती विज्ञान , इतिहास, भूगोल आदि विषयों में सिर्फ पासिंग मार्क्स का प्रावधान रखा जाए। ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्र गणित-विज्ञान की तरफ आकर्षित हो। . 22) अगर शिक्षा मंत्री सिलेबस में गणित-विज्ञान पर भार नहीं देगा तो जिला शिक्षा अधिकारी गणित-विज्ञान के शिक्षा के स्तर में कैसे सुधार ला पायेगा ?
रिकालिस्ट : इसमें अगर मगर की कोई गुंजाइश ही नहीं है। पिछले 25 वर्षो से यह साफ़ देखा जा सकता है कि सभी राजनैतिक पार्टियों के मंत्री लगातार ऐसे आदेश निकाल रहे है जिससे गणित-विज्ञान की शिक्षा के स्तर में गिरावट आये। तो इसके लिए हमें राईट टू रिकॉल शिक्षा मंत्री के क़ानून की जरूरत है। राईट टू रिकॉल मंत्री का क़ानून लाकर ही शिक्षा मंत्री को काबू किया जा सकेगा। अन्यथा कोई उपाय नहीं। राईट टू रिकॉल मंत्री के अभाव में राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी का क़ानून वांछित बदलाव नहीं ला पायेगा। . 23) मंत्रीयो को भारत में गणित-विज्ञान का स्तर गिराने में क्या रुचि है ? इससे उन्हें क्या फायदा ?
रिकालिस्ट : मंत्रियो को रुचि नहीं है। लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इसमें रुचि है। उनका सारा बिजनेस तकनीक एवं हथियार निर्माण उद्योगों पर टिका हुआ है। यदि किसी देश में गणित-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग का विकास होगा एवं अदालतें चुस्त हो जायेगी तो अमुक देश जटिल प्रोद्योगिकी विकास में सक्षम हो जाता है। भारत तकनीक के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर बुरी तरह से निर्भर है। वे भारत में अपने कारोबार का एकाधिकार बनांये रखने के लिए भारत को गणित-विज्ञान में पिछड़ा बनाए रखना चाहते है। अत: वे मंत्रीयो , सीएम एवं पीएम को ऐसे क़ानून लागू करने के लिए बाध्य करते है। . 24) वे पीएम एवं सीएम को बाध्य कैसे कर सकते है ?
रिकालिस्ट : चुनाव जीतने के लिए सभी नेता मीडिया पर निर्भर करते है। भारत में मीडिया पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पूरा नियन्त्रण है। यदि नेता बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिको की बात नहीं मानेंगे तो वे मीडिया द्वारा उनकी छवि ख़राब करके उनके वोट काट देंगे। . 25) भारत में गणित-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग का स्तर वे कैसे तोड़ते है ? उदाहरण दीजिये।
रिकालिस्ट : भारत में 8 वीं क्लास तक फेल न करने का क़ानून इसीलिए लागू किया गया। यदि छात्रों को फेल न किया जाएगा तो वे गणित-विज्ञान पढेंगे नहीं लेकिन फिर भी पास होते चले जायेंगे। और आठवीं क्लास के बाद उन्हें गणित-विज्ञान कभी समझ नहीं आएगी, अत: उनमे से ज्यादातर छात्र सामाजिक विज्ञान , राजनीति विज्ञान एवं भूगोल जैसे अनुत्पादक विषयों की और रूख करेंगे।
इसके अलावा , गणित एवं विज्ञान का पाठ्यक्रम लगातार कमजोर किया जा रहा है , एवं पाठ्यक्रम में अनुत्पादक विषय एवं गैर शैक्षणिक गतिविधियों को जोड़ा जा रहा है। अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में आधी कटौती करने का फैसला किया है। इसके अलावा सरकारी स्कूलों को बदहाल बनाना भी इसी योजना का हिस्सा है। सरकारी स्कूल बदतर होने के कारण कस्बो एवं गावों के छात्र गणित-विज्ञान में पिछड़ जाते है , क्योंकि उन्हें कोचिंग संस्थान उपलब्ध नहीं है। इस तरह एक बहुत बड़ा तबका गणित-विज्ञान की दौड़ से बाहर हो जाता है।
बच्चो को नाच, गाने , संगीत आदि अनुत्पादक गतिविधियों में धकलने के लिए टीवी पर इस तरह के धारावारीको का निरंतर प्रसारण किया जाता है। थ्री इडियट एवं दंगल जैसी फिल्मे छात्रों को गणित-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग छोड़कर गैर शैक्षणिक गतिविधियों में खुद को खपाने के लिए प्रेरित करती है। खिलाडियों एवं विशेष रूप से क्रिकेट खिलाडियों को मीडिया पर विशेष रूप से प्रोत्साहन दिया जाता है। सरकार भी अभिनेताओं एवं खिलाडियो को लगातार पुरुस्कारों से सम्मानित करती है। समग्र प्रभाव यह बनता है कि प्रतिभाशाली छात्र शिक्षा को तवज्जो देने की जगह इन गैर उत्पादक गतिविधियों में जाने को प्रोत्साहित होते है।
इसके अलावा कक्षा 10 एवं 12 में पूछे जाने प्रश्नों को सरल किया जा रहा है। परीक्षा में ज्यादातर प्रश्न पाठ्यपुस्तक के पाठ में दिए गए अभ्यास प्रश्नों से ही पूछे जाने लगे है। ताकि छात्र को ज्यादा नही पढना पड़े , एवं वह सरलता से पास हो जाए। कुछ वर्षो पहले गणित-विज्ञान की वार्षिक परीक्षाओ में प्रश्न पाठ के अंदर से पूछे जाते थे, अभ्यास प्रश्नों में से नहीं। इस तरह वे बहुत ही धीमे धीमे और नजर में न आने वाले तरीको से गणित-विज्ञान एवं इंजीनियरिंग का स्तर तोड़ रहे है। . 26) लेकिन थ्री इडियट तो इंजीनियरिंग कोलेज पर ही बनी थी। उसमें पढने के लिए प्रेरित किया गया है।
रिकालिस्ट : थ्री इडियट छात्रों को यह तर्क मुहैया कराती है कि यदि आपकी इच्छा पढने की नहीं है तो आप न पढो। आप गणित-विज्ञान पढने की जगह गले में कैमरा लटकाकर जंगलो में जानवरों के फोटो निकालो। थ्री इडियट "जो अच्छा लगे वो करो" का सन्देश देती है। जाहिर है कि बच्चो की रुचि स्वाभाविक रूप से पढने में नहीं होती। उनकी रुचि खेलकूद , गाने बजाने और नाच गाने जैसे मनोरंजक विषयों में ही होती है। . 27) तो शिक्षा मंत्री पर राईट टू रिकॉल होने से क्या हो जाएगा। यदि पीएम एवं सीएम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एजेंडे पर कार्य करेंगे तो शिक्षा मंत्री उन्हें कैसे रोकेगा।
शिक्षा मंत्री पर राईट टू रिकॉल आने से शिक्षा मंत्री सीधे नागरिको द्वारा चुनकर आयेगा, और नागरिक ही उसे नौकरी से निकाल सकेंगे। न तो पीएम / सीएम उनका मंत्रालय बदल सकेंगे न ही उन्हें मंत्री पद से हटा सकेंगे। इस तरह शिक्षा मंत्री सिर्फ जनता के प्रति जवाबदेह होगा, और अपना कार्य ईमानदारी से करेगा या फिर अपनी नौकरी गवाएगा। . 28) आपने कहा कि हमारे नेता अपनी छवि बनाये रखने के लिए और वोट जुटाने के लिए मीडिया पर निर्भर है। मीडिया को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के चंगुल से आजाद करने के लिए हमें कैसा क़ानून चाहिए। . रिकालिस्ट : देखिये , बात घूम फिर कर फिर से वहीँ आ जाती है। दूरदर्शन अध्यक्ष अभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से घूस खाता है और दूरदर्शन का स्तर कचरा बनाए रखता है। डीडी चेयरमेन के पास इतने संसाधन है कि यदि दूरदर्शन अध्यक्ष इमानदारी से काम करे तो वह प्राइवेट चेनल्स को जमा कर सकता है। लेकिन डीडी चेयरमेन को नौकरी से निकालने का अधिकार भारत की जनता के पास नहीं है। तो वह जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है। कोई भी अधिकारी उसी के हितो के लिए काम करता है जो उसे नौकरी से निकाल सकता है, उसे दण्डित कर सकता है और पदोन्नत कर सकता है। यदि ये अधिकार जनता के पास रहेंगे तो अमुक अधिकारी जनता के हितो के लिए काम करेगा वर्ना उस व्यक्ति के लिए काम करेगा जिसके पास ये अधिकार है। डीडी चेयरमेन के विषय में यह अधिकार पीएम के पास है। अत: वह पीएम को खुश रखने के लिए काम करता है। यदि डीडी चेयरमेन पर राईट टू रिकॉल आ जायेगा तो वह या तो ईमानदारी से काम करेगा या अपनी नौकरी गवायेगा। . 29) डीडी चेयरमेन कैसे चुना जाएगा एवं नागरिक इसे किस तरह नौकरी से निकालेंगे ?
रिकालिस्ट : दूरदर्शन अध्यक्ष को चुनने के लिए पूरे देश के मतदाता अनुमोदन दर्ज करेंगे। प्रत्येक राज्य में भी एक डीडी चेयरमेन होगा एवं उसे अमुक राज्य के मतदाता चुनेंगे। साथ ही नागरिक अपने अनुमोदन रद्द करके इन्हें किसी भी समय नौकरी से भी निकाल सकेंगे। इसकी विस्तृत प्रक्रिया देखने के लिए कृपया हमारे द्वारा प्रस्तावित राईट टू रिकॉल दूरदर्शन अध्यक्ष का ड्राफ्ट पढ़ें। . 30) और कौन कौन से पदों पर आपने राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओं का प्रस्ताव किया है ?
रिकालिस्ट : हमने जनप्रतिनिधियों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री , मंत्री , मेयर , अधिकारियों में जिला शिक्षा अधिकारी , जिला पुलिस प्रमुख , जिला रसद अधिकारी , सीबीआई निदेशक , डीडी अध्यक्ष , सेंसर बोर्ड चेयरमेन एवं न्यायपालिका में जजों को शामिल करते हुए कुल 50 से ज्यादा पदों पर राईट टू रिकॉल प्रक्रियाएं प्रस्तवित की है। . 31) क्या सांसद , विधायक एवं सरपंच पर भी राईट टू रिकॉल नहीं होना चाहिए ?
रिकालिस्ट : होना चाहिए। हमने इन पदों के लिए भी राईट टू रिकॉल ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है। परन्तु प्रचार के लिए हम इन पर ज्यादा भार नहीं देते। . 32) पुलिस प्रमुख की नियुक्ति तो परीक्षा पास करने से होती है। इसके लिए प्रशासनिक अनुभव एवं प्रशिक्षण भी चाहिए। आप पुलिस प्रमुख को चुनने का अधिकार नागरिको को कैसे दे सकते है ?
रिकालिस्ट : भारत में प्रधानमन्त्री बनने के लिए कोई प्रशिक्षण या योग्यता क्यों नहीं चाहिए। जबकि प्रधानमन्त्री को पूरा देश चलाना होता है !! प्रधानमंत्री के सामने तो पुलिस प्रमुख काफी छोटा पद है। दरअसल , पुलिस प्रमुख को यह देखना होता है कि क़ानून का पालन किया जा रहा है या नहीं। इसके लिए किसी प्रशिक्षण की जरुरत नहीं होती। यह ज्ञान व्यक्ति को सामान्य समझ से ही आ जाता है। तो जो पुलिस अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी पुलिस प्रमुख बनना चाहेगा , वह नागरिको से अनुमोदन ले सकता है। या मौजूदा पुलिस प्रमुख अपने आप में सुधार ले आएगा , तो नागरिको को उसे बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा पुलिस प्रमुख के अलावा उसका शेष स्टाफ उसी तरीके से नियुक्त होगा जिस तरीके से आज होता है। तो उसे तकनिकी मामलों में प्रशिक्षित स्टाफ उपलब्ध होगा। . 33) क्या राईट टू रिकाल व्यवहारिक है ?
रिकालिस्ट : बिलकुल व्यवहारिक है। अमेरिका में जिला पुलिस प्रमुख को नौकरी से निकालने का अधिकार वहां के नागरिको के पास है। इसके अलावा अमेरिका में जजों , मुख्यमंत्री , मेयर, पब्लिक प्रोसिकूटर आदि पदों पर भी राईट टू रिकॉल प्रक्रियाएं है। यही वजह है कि अमेरिका के पुलिस प्रशासन में भारत की तुलना में कम भ्रष्टाचार है। . 34) किन्तु अमेरिका में लोग शिक्षित है। भारत जैसे अशिक्षित देश में राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख का क़ानून कैसे लागू किया जा सकता है ?
रिकालिस्ट : पहली बात तो यह कि अमेरिका में शिक्षा का स्तर ज्यादा बेहतर सिर्फ इसीलिए है क्योंकि वहां पर जिला शिक्षा अधिकारी को नौकरी से निकालने का अधिकार जिले के नागरिको के पास है। दूसरी बात यह कि , ईमानदार अधिकारी / नेता को चुनने एवं भ्रष्ट को निकालने की समझ पैदा करने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। यह कॉमन सेन्स की बात है। यह कॉमन सेन्स मानव मात्र में होता है। यदि कॉमन सेन्स का सम्बन्ध शिक्षा से होता है तो फिर भारत के सभी अशिक्षित नागरिको के सभी वोटिंग राइट्स क्यों नहीं छीन लिए जाने चाहिए ? बताइये। जब भारत के लोग अपने सांसदों एवं विधायको को चुन सकते है तो पुलिस प्रमुख को भी चुन सकते है। . 35) पुलिस प्रमुख को राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओ से बाहर रखने में क्या दिक्कत है ?
रिकालिस्ट : सबसे जरुरी एवं पहला क़ानून हमें राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख ही चाहिए। पुलिस सबसे ताकतवर विभाग है , एवं पुलिस प्रमुख के पास स्थानीय प्रशासन एवं अपराधो को नियंत्रित करने की सबसे ज्यादा शक्तियां होती है। सभी प्रकार के अपराधो की जांच पुलिस ही करती है। आज पुलिस प्रमुख सांसदों, विधयाको एवं मुख्यमंत्री के इशारों पर काम करता है। सारे भ्रष्टाचार की असली वजह यही है। पुलिस प्रमुख को नेताओं के चंगुल से आजाद करने की जरूरत है। पुलिस प्रमुख को प्रजा के अधीन किये बिना किस भी तरह से अपराध एवं दमन में कमी नहीं लायी जा सकती है। . 36) भारत में लोग जातिगत आधार पर वोट करते है। अत: वे अपनी जाति के व्यक्ति को पुलिस अधिकारी बना देंगे।
पहली बात - भारत के मतदाता जातीय आधार पर वोट नहीं करते है। भारत में पार्टी सिस्टम होने के कारण मतदाताओं के पास उम्मीदवारों के रूप में 2-3 विकल्प ही रहते है। बड़ी पार्टियो के ये उम्मीदवार भी भ्रष्ट और निकम्मे होते है। अत: मतदाता के पास उम्मीदवार को चुनने की कोई वजह नहीं रह जाती। अत: वे अपनी जाति को वजह बनाने के लिए बाध्य हो जाते है। यदि उनके पास अपनी जाति का एक भ्रष्ट और निकम्मा उम्मीदवार होगा किन्तु अन्य जाति का उम्मीदवार यदि कार्यकुशल एवं ईमानदार है तो वे ईमानदार एवं काबिल व्यक्ति को ही वोट करते है। किन्तु पेड मीडिया इसे इस तरह से रिपोर्ट करता है जिससे या सन्देश जाए कि भारत के मतदाता अपनी जाति के ही उम्मीदवार को वोट करने के आदि है। जब किसी जाति विशेष का ही उम्मीदवार क्षेत्र में अपनी जाति का बहुमत होने के बावजूद हार जाता है तो मीडिया इसे कभी रिपोर्ट नहीं करता। इस तरह यह भ्रम खड़ा किया गया है कि भारत के नागरिक जाति देखकर वोट करते है।
जातिय आधार पर वोटिंग को हतोत्साहित करने के लिए हमने इंस्टेंट रन ऑफ़ वोटिंग सिस्टम का प्रस्ताव किया है। इस प्रक्रिया के आने से जातिय आधार पर वोटिंग बड़े पैमाने पर हतोत्साहित होगी।
दूसरी बात - भारत में किसी भी जिले में किसी जाति का बहुमत नहीं है। अत: किसी जाति विशेष द्वारा अपनी जाति के उम्मीदवार को सिर्फ जातीय आधार पर पुलिस प्रमुख के रूप में चुन लिए जाने की सम्भावना बेहद कम है। और यदि वे अपनी जाति के व्यक्ति को चुन भी लेते है और यदि अमुक पुलिस प्रमुख निकम्मा और भ्रष्ट है तो वे उससे आजिज आकर उसे जल्दी ही नौकरी से निकाल देंगे।
तीसरी बात - यदि किसी क्षेत्र विशेष में अधिकाँश आबादी किसी एक ही जाति की है तो यह भी तय है कि अन्य उम्मीदवार भी उसी जाति के होंगे। तो इस वजह से एक ही जाति के एक से अधिक उम्मीदवार होने के कारण जातीय आधार पर वोटिंग करने की वजह स्वत: ही समाप्त हो जाएगी। . 37) भारत के लोग भ्रष्ट है। वे अपना वोट बेच देते है। अत: पुलिस प्रमुख वोट खरीद लेगा।
पहली बात - जब आप कहते है कि भारत के लोग भ्रष्ट है तो इसमें आप खुद को शामिल करते है या नहीं। यदि आप खुद को इसमें शामिल करते है तो आप खुद को भ्रष्ट कहिये, भारत के शेष नागरिको को क्यों भ्रष्ट कह रहे है ? और यदि आप खुद को इसमें शामिल नहीं करते है तो आपको पुनर्विचार करने की जरूरत है। क्योंकि आप खुद के अलावा देश के सभी नागरिको को भ्रष्ट कह रहे है।
दूसरी बात - भारत के लोग भ्रष्ट नहीं है। और वे अपना वोट नहीं बेचते है। लेकिन गरीब आदमी हर सूरत से पैसे लेने का अवसर नहीं गंवाता। तो मान लीजिये कि कोई गरीब व्यक्ति पैसे लेकर किसी उम्मीदवार को वोट करने का वादा करता है। लेकिन भारत में मतदान गुप्त होता है , अत: यह कभी पता नहीं लगाया जा सकता कि उसने पैसा लेकर किसे वोट किया है। और जो व्यक्ति किसी एक उम्मीदवार से पैसे लेता है वह सभी उम्मीदवारों से पैसे ले लेता है, और वोट उसे ही देता है जिसे उसे देना होता है। इस हिसाब से वोट खरीदने की थ्योरी काल्पनिक है।
तीसरी बात - उम्मीदवार किसी मतदाता को पैसे देने का साहस इसीलिए करता है क्योंकि वह जानता है कि एक बार वोट करने के बाद मतदाता अपना वोट अगले 5 वर्ष तक वापिस नहीं लौटा सकेगा। किन्तु हमारे द्वारा प्रस्तावित राईट टू रिकॉल क़ानून में मतदाता किसी भी दिन अपना वोट फिर से लौटा सकता है। इस वजह से कोई भी उम्मीदवार वोट खरीदने की कोशिश नहीं करेगा। क्योंकि उम्मीदवार एक ही व्यक्ति को रोज तो पैसे देने वाला नहीं है। इससे तो वह बर्बाद हो जाएगा। इस तरह राईट टू रिकॉल क़ानून वोटो की खरीद फरोख्त की समस्या को हमेशा के लिए ख़त्म कर देगा। . 38) भारत बहुत बड़ा देश है। राईट टू रिकॉल जैसे क़ानून छोटे देशो के लिए तो उपयुक्त है, किन्तु भारत जैसे देश के लिए ?
रिकालिस्ट : देश बड़ा छोटा होने से कुछ नहीं होता। प्रत्येक देश प्रशासन की दृष्टी से छोटी छोटी इकाइयों में विभाजित होता है। देश में राज्य , राज्य में जिले, जिलो में तहसील एवं गाँव आदि होते है। एक जिले में एक पुलिस प्रमुख होता है। भारत का जिला हो या अमेरिका का जिला हो या स्विट्जर्लेंड का जिला हो, जिले की आबादी एवं आकार कमोबेश एक जैसा ही रहता है। पुलिस प्रमुख या किसी जिला अधिकारी को शेष भारत से कोई मतलब नहीं , उसे सिर्फ अपना जिला देखना होता है। . 39) राईट टू रिकॉल आने से रोज रोज चुनाव होने लगेंगे ?
रिकालिस्ट : नहीं होंगे। अधिकारी को बदलने का अधिकार सिर्फ आपको नहीं दिया जा रहा है। रिकाल सिर्फ तब होगा जब किसी जिले के नागरिको का बहुमत रिकॉल करना चाहेगा। मान लीजिये किसी जिले में १० लाख मतदाता है, एवं पदासीन जिला पुलिस प्रमुख को ६ लाख अनुमोदन प्राप्त है। तो रिकॉल सिर्फ तब होगा जब किसी उम्मीदवार को पदासीन पुलिस प्रमुख से अधिक अनुमोदन प्राप्त हो एवं यह अनुमोदन ५ लाख से अधिक भी हो। तो कुछ हजार मतदाता के चाहने से रिकॉल होना संभव नहीं है। जब तक जिले के नागरिको का बहुमत नहीं चाहेगा तब तक रिकॉल नहीं होगा। लेकिन जैसे जैसे पुलिस प्रमुख का भ्रष्टाचार एवं निकम्मापन नागरिको के सामने आता जाएगा वैसे वैसे उसके अनुमोदनो की संख्या कम होती जाएगी। और जब उसका प्रदर्शन बेहद घटिया स्तर तक पहुँच जाएगा तो रिकाल होगा।
व्यवहारिक रूप से यह देखने में आया है कि रिकॉल की कभी नौबत ही नहीं आती। क्योंकि अधिकारी रिकॉल होने की सम्भावना देखकर त���रंत अपने व्यवहार में परिवर्तन ले आता है। . 40) राईट टू रिकॉल विदेशी कांसेप्ट है। हम स्वदेशी में मानते है।
पहली बात -- भारत की रेल से लेकर प्लेन एवं आपके मोबाइल से लेकर फेसबुक तक सब विदेशी है , तो पहले आप इन सब का त्याग कीजिये। वोट देने का अधिकार भी विदेश से ही आया है। अत: आप अपना मतदाता पहचान पत्र रद्द करवाइए और घोषणा कीजिये कि आप आइन्दा वोट नहीं करेंगे। क्योंकि वोट देना एवं अपने जनप्रतिनिधियों को चुनना भी एक विदेशी कोंसेप्ट है। पर आप ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि आप वोट करने का अधिकार चाहते है। हमने इसमें बस इतना जोड़ा है कि आपके पास वोट देने के साथ ही अपना वोट फिर से लौटा देने का अधिकार भी हो। इस तरह हम आपके अधिकारों में कानूनी वृद्धि कर रहे है। इसमें स्वदेशी विदेशी कुछ नहीं है।
दूसरी बात - महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने 19वीं शताब्दी में लिखी गयी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में राजा के प्रजा अधीन होने की अवधारणा प्रस्तुत की थी, और उन्होंने यह विचार वेदों से लिया था। क्या वेद एवं सत्यार्थ प्रकाश विदेशी है ? महात्मा सच्चिन्द्र नाथ सान्याल एवं महात्मा चंदशेखर आजाद ने 1925 में अपनी पार्टी के मेनिफेस्टो में राईट टू रिकॉल कानूनों की मांग की थी। क्या ये क्रांतिकारी भी विदेशी थे ? राजिव भाई दीक्षित भी इन कानूनों की मांग कर रहे थे, क्या आप राजीव भाई को भी विदेशी मानते है ? . 41) महात्मा सच्चिन्द्र नाथ सान्याल एवं महात्मा चंदशेखर आजाद को तब राईट टू रिकॉल कानूनों कैसे सूझ गए थे ?
रिकालिस्ट : 1920 में भारत में पहली दफा चुनाव हुए थे एवं स्थानीय निकायों में भारतीय जनप्रतिनिधि चुने गए। लेकिन चुनने के तुरंत बाद इनमे से ज्यादातर ने अंग्रेजो से गठजोड़ बना लिए थे। इस घटना से महात्मा सच्चिन्द्र नाथ सान्याल, महात्मा चंदशेखर आजाद एवं अन्य क्रांतिकारी यह बात ताड़ गए थे कि बिना राईट टू रिकॉल के यदि आजादी आ भी जाती है दशा वही रहने वाली है। उन्होंने तात्कालीन परिस्थिति के आधार पर भविष्य का यह आकलन कर लिया था कि यदि "आजाद भारत में राईट टू रिकॉल क़ानून नहीं हुए तो लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा"। बाद में जब महात्मा भगत सिंह जी इनके सम्पर्क में आये तो उन्होंने भी इन कानूनों का समर्थन किया। . 42) अन्ना और केजरीवाल जी भी तो राईट टू रिकॉल कानूनों के समर्थक है ? आप भी उन्ही के साथ हो क्या ?
रिकालिस्ट : इस समय ये दोनों महाशय भारत में राईट टू रिकॉल कानूनों के सबसे बड़े फर्जी समर्थक है। ये दोनों ही राईट टू रिकॉल कानूनों का मौखिक समर्थन करते है किन्तु इसका ड्राफ्ट नही देते। इसके अलावा इन लोगो ने जनलोकपाल के ड्राफ्ट में राईट टू रिकॉल प्रक्रियाएं रखने से भी साफ़ मना कर दिया था। इस तरह हम इन्हें राईट टू रिकॉल कानूनों के फर्जी समर्थक कहते है। ये सिर्फ मौखिक बयानबाजी करके राईट टू रिकॉल कानूनों के समर्थक नागरिको के सामने यह दिखावा करना चाहते है कि वे राइट टू रिकॉल कानूनों के समर्थक है। . 43) वरुण गाँधी ने तो राईट टू रिकॉल सांसद के लिए कानूनी ड्राफ्ट दिया है। वे तो राईट टू रिकॉल के समर्थक है ?
रिकालिस्ट : वरुण गांघी ने जो राईट टू रिकॉल सांसद का जो ड्राफ्ट दिया है उसे पढ़िए। आप खुद जान जायेंगे कि वे इन कानूनों के कितने बड़े फर्जी समर्थक है। उन्होंने जो ड्राफ्ट दिया है उसके अनुसार सांसद को रिकॉल करना कभी भी सम्भव नही हो पायेगा , जबकि रिकॉल की मांग करने वाले कार्यकर्ताओ को ही गिरफ्तार किया जा सकता है !! इस तरह वे उल्टा राईट टू रिकॉल क़ानून लाना चाहते है, ताकि नागरिक राईट टू रिकॉल कानूनों से हमेशा के लिए नेगेटिव हो जाए। . 44) बीजेपी , कोंग्रेस , सपा , बसपा आदि पार्टियों का राईट टू रिकॉल कानूनों पर क्या रूख है ?
रिकालिस्ट : ये चारो पार्टियाँ एवं इनके सभी शीर्ष नेता राईट टू रिकॉल कानूनों के धुर विरोधी है। उन्हें राईट टू रिकॉल कानूनों से इतना विरोध है कि वे इस लफ्ज का नाम लेना तक पसंद नही करते। उन्हें यह भय रहता है कि इस लफ्ज का सार्वजनिक रूप से उच्चारण करने से इन कानूनों के बारे जानकारी नागरिको तक पहुँच जायेगी। देश की अन्य सभी राजनैतिक पार्टियाँ भी इन कानूनों की विरोधी है।
रिकालिस्ट : एक बार लिख दिये जाने के बाद क़ानून ड्राफ्ट स्वतंत्र हो जाते है। इन्हें व्याख्या या स्पष्टीकरण के लिए लेखक या किसी सन्दर्भ की जरूरत नहीं होती है। क्या आप बता सकते है कि जीएसटी क़ानून किसने लिखा है ? नही। क्योंकि किसी भी क़ानून पर लिखने वाले का नाम नहीं होता। हमने ये ड्राफ्ट इंटरनेट पर प्राप्त किये थे। इन्हें किसने लिखा है इस बारे में हमें ठीक से जानकारी नहीं है। और हमे इसके लेखक का पता लगाने में रुचि भी नहीं है। यह एक अप्रासंगिक प्रश्न है।